Shahid Mirza is best programmer in the World

Sunday, November 13, 2011

सिंगल यूजर और मल्टीयूजर क्या होता हैं!





जैसा की नाम से ही स्पष्ट है सिंगल यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम में कम्प्यूटर पर एक समय में एक आदमी काम सकता है । सिंगल यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम मुख्यतः पर्सनल कम्प्यूटरों में प्रयोग किए जाते हैं, जिनका घरों व छोटे कार्यालयों में उपयोग होता है । डॉस, विंडोज इसी के उदाहरण है ।




मल्टीयूजर प्रकार के सिस्टमों में एक समय में बहुत सारे व्यक्ति काम कर सकते हैं और एक ही समय पर अलग-अलग विभिन्न कामों को किया जा सकता है । जाहिर है, इससे कम्प्यूटर के विभिन्न संसाधनों का एक साथ प्रयोग किया जा सकता है । यूनिक्स इसी प्रकार का ऑपरेटिंग सिस्टम है ।

हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर क्या होता हैं!

अव्यावहारिक तौर पर अगर कंप्यूटर को परिभाषित किया जाये तो हम हार्डवेयर को मनुष्य का शरीर और सॉफ्टवेर को उसकी आत्मा कह सकते हैं. हार्डवेयर कंप्यूटर के हिस्सों को कहते हैं, जिन्हें हम अपनी आँखों से देख सकते हैं, छू सकते हैं अथवा औजारों से उनपर कार्य कर सकते हैं! ये वास्तविक पदार्थ है! इसके विपरीत सॉफ्टवेयर कोई पदार्थ नहीं है! ये वे सूचनाएं, आदेश अथवा तरीके हैं जिनके आधार पर कंप्यूटर का हार्डवेयर कार्य करता है! कंप्यूटर हार्डवेयर सॉफ्टवेयर से परिचित होते हैं अथवा सॉफ्टवेयर कंप्यूटर के हार्वेयर से परिचित एवं उनपर आधारित होते हैं!

हार्डवेयर का निर्माण कारखानों में होता है, जबकि सॉफ्टवेयर कंप्यूटर ज्ञाता के मस्तिष्क की सोच द्वारा बनाएं जाते हैं, जिनके आधार पर कल -कारखाने हार्डवेयर को उत्पादित करते हैं! सामन्य भाषा में कहा जाए तो सॉफ्टवेयर कंप्यूटर द्वारा स्वीकृत विनिर्देश होते हैं जिनके माध्यम से कंप्यूटर कार्य करते हैं! कंप्यूटर हार्डवेयरों के निर्माण में उच्च टेक्नोलोजी का इस्तेमाल किया जता है! इनका निर्माण कल -कारखानों में ही मशीनों व उपकरणों की सहायता से होता है! सॉफ्टवेयर कंप्यूटर सिद्धांतो के आधार पर हार्डवेयर के लिए आवश्यक निर्देश होते हैं, इन्हें तैयार करने के लिए किसी कारखाने की आवश्यकता नहीं होती! कोई भी व्यक्ति जो कंप्यूटर के मूल सिद्धांतो एवं कार्य प्रणाली से परिचित हो अपने मस्तिष्क के उपयोग से सॉफ्टवेयर तैयार कर सकता है

कम्पाइलर और इन्टरप्रिटर क्या होता है

कम्पाइलर
कम्पाइलर किसी कम्प्यूटर के सिस्टम साफ्टवेयर का भाग होता है । कम्पाइलर एक ऐसा प्रोग्राम है, जो किसी उच्चस्तरीय भाषा में लिखे गए प्रोग्राम का अनुवाद किसी कम्प्यूटर की मशीनी भाषा में कर देता है ।

उच्चस्तरीय भाषा प्रोग्राम –> कम्पाइलर –> मशीनी भाषा प्रोग्राम

हर प्रोग्रामिंग भाषा के लिए अलग-अलग कम्पाइलर होता है पहले वह हमारे प्रोग्राम के हर कथन या आदेश की जांच करता है कि वह उस प्रोग्रामिंग भाषा के व्याकरण के अनुसार सही है या नहीं ।यदि प्रोग्राम में व्याकरण की कोई गलती नहीं होती, तो कम्पाइलर के काम का दूसरा भाग शुरू होता है ।यदि कोई गलती पाई जाती है, तो वह बता देता है कि किस कथन में क्या गलती है । यदि प्रोग्राम में कोई बड़ी गलती पाई जाती है, तो कम्पाइलर वहीं रूक जाता है । तब हम प्रोग्राम की गलतियाँ ठीक करके उसे फिर से कम्पाइलर को देते हैं ।

इन्टरप्रिटर
इन्टरपेटर भी कम्पाइलर की भांति कार्य करता है । अन्तर यह है कि कम्पाइलर पूरे प्रोग्राम को एक साथ मशीनी भाषा में बदल देता है और इन्टरपेटर प्रोग्राम की एक-एक लाइन को मशीनी भाषा में परिवर्तित करता है । प्रोग्राम लिखने से पहले ही इन्टरपेटर को स्मृति में लोड कर दिया जाता है ।

कम्पाइलर और इन्टरप्रिटर में अन्तर


इन्टरपेटर उच्च स्तरीय भाषा में लिखे गए प्रोग्राम की प्रत्येक लाइन के कम्प्यूटर में प्रविष्ट होते ही उसे मशीनी भाषा में परिवर्तित कर लेता है, जबकि कम्पाइलर पूरे प्रोग्राम के प्रविष्ट होने के पश्चात उसे मशीनी भाषा में परिवर्तित करता है ।

कंप्यूटर और मानवीय मस्तिष्क


कल्पनाशीलता अथवा रचनात्मकता कंप्यूटरों की सीमा के बाहर है. जिस किसी काम की कभी कल्पना नहीं की गई हो कंप्यूटर उसे नहीं कर सकते जबकि मानवीय मस्तिष्क इस सीमा को लांघने की शक्ति रखता है. कंप्यूटर मानवीय मस्तिष्क से संभव हो सकने वाले कामो में से बहुत कम काम ही कर सकता है इसलिए कंप्यूटर मानव के दास की भूमिका में ही केवल सटीक बैठता है. कंप्यूटर जो भी काम कर सकता है दरसल वो मानवीय मस्तिष्क का ही देन होता हैं. हरेक एक मनुष्य का मस्तिष्क अलग अलग होता है, वो एक ही काम को अलग अलग तरीकों से करेगा, परन्तु १० या १००० एक जैसा तैयार किया गया कंप्यूटर एक जैसा ही काम करता है.



कंप्यूटर प्रोग्रामर (जो कंप्यूटर को निर्देषित करता है) कंप्यूटर को पहले बतलाता है की ________ + _______ = ? का अगर कहीं जवाब देना हैं तो खाली जगह में भरा गया पहले नंबर का बिट और दूसरे नंबर की बिट को जोड़ने पर जो भी बिट आयेगी उससे पुनः डिजिटल में प्रदर्शित करना है. इसके बाद जब भी कोई यूसर (जो बनाये गए प्रोग्राम को उपयोग करता है) ______+______=? के जगह 2 + 4 = ? पूछेगा तो कंप्यूटर तुरंत 2+4 = 6 को प्रदर्शित कर देगा. इसके बदले अगर वह बार बार कोई अलग संख्या भी देगा तो उससे तुरंत जवाब मिलेगा.

हार्ड कॉपी और सॉफ्ट कॉपी के बीच अंतर

1. मोनिटर में दिखने वाली कॉपी को सोफ्ट कॉपी कहा जाता हैं.

2.Cd को सोफ्ट कॉपी कहा जाता हैं.

3. प्रिंटर से निकाले गए कॉपी को हार्ड कॉपी कहा जाता हैं.

DOS डी.ओ.स. –डोस (डिस्क ऑप्रेटिंग सिस्टम) क्या है

वैज्ञानिकों के अलावा साधारण उपभोक्ताओं के लिये एक ऑपरेटिंग सिस्टम की शुरुआत की गयीं जिसका नाम डी.ओ.स. –डोस (डिस्क ऑप्रेटिंग सिस्टम) रखा गया. यह ऑप्रेटिंग सिस्टम कंसोल मोड आधारित था, अर्थात इसमें माउस का उपयोग नहीं होता था न ही इसमें ग्राफ़िक से सम्बंधित कोई काम हो सकता था. इसमें फाइल और डायरेक्टरी बनाया जा सकता था जिसमे हम टेक्स्ट को सुरक्षित कर के रख सकते थे और पुनः उपयोग भी कर सकते थे.
डी.ओ.स. पूर्णतः आदेश (COMMAND) पर आधारित होता था. आदेश के दुवारा ही कंप्यूटर को निर्देशित कर सकते थे. जिन्हें जितना आदेश याद होता था उसे उतना ही जानकार माना जाता था. आदेश (COMMAND)- यह कंप्यूटर को निर्देशित करने का तरीका होता हैं. पहले ही कंप्यूटर को यह बतला दिया जाता है की निम्न शब्द का प्रयोग करने से निम्न प्रकार का ही काम करना हैं. और जब कोई उपभोक्ता बस उस आदेश को लिखता हैं तो कंप्यूटर स्वतः उस काम को निष्पादित करता हैं.

डी.ओ.स. को ऑप्रेटिंग सिस्टम का माँ भी कहा जाता हैं, क्योंकि हम आज जिस भी ऑप्रेटिंग सिस्टम का उपयोग करते हैं उसका मुख्य आधार डी.ओ.स. ही होता हैं. बाद के समय में मायक्रोसॉफ्ट कंपनी ने इसे खरीद लिया, उसके बाद इसे ऍम.एस.डी.ओ.स. के नाम से जाना जाने लगा. हम यहाँ डी.ओ.स. के कमांडो का ज्यादा चर्चा नहीं करेंगे क्योंकि आज हम प्रत्यक्ष रूप से इसका उपयोग नहीं करते हैं.

डी.ओ.स. में साधारणतया हमें “C:\>_” प्रकार की आकृति बनी हुई दिखाई पड़ती हैं. जब हम डी.ओ.स. खोलते हैं तो स्क्रीन के बायीं ओर यह दिखलाई पड़ता हैं.

C: यह बतलाता है कि हम हार्डडिस्क के किस भाग में हैं. सामान्यतः हार्डडिस्क C: D: E: में और फ्लॉपी A: के तौर पर दिखाई पड़ता हैं. यह क्रम कोई जरुरी नहीं होता.

यह बतलाता हैं कि हम किस डायरेक्टरी में हैं. डायरेक्टरी उस स्थान को कहा जाता हैं जहाँ हम फाइल को सुरक्षित रखते हैं, और फाइल हम उसे कहते हैं जिसके अंतर्गत सूचनाओं को रखा जाता हैं. दूसरे शब्दों में अगर कहें तो हम जो साधारण कॉपी पर लिखते हैं उससे फाइल कहा जाता हैं और उस कॉपी को सहेज कर रखने के लिये जो आलमारी या रैक का उपयोग किया जाता हैं उससे डायरेक्टरी कहते हैं.

विन्डोज़ का एसेसरीज मेनू

विंडोज के अंदर का अधिकांश आंतरिक प्रोग्राम एसेसरीज मेनू के अंदर दिखलाया जाता हैं जो स्टार्ट बटन के अंदर समाहित होता है.

एसेसरीज मेनू खोलने के लिए टास्कबार मे मौजूद स्टार्ट बटन पर क्लिक (जहाँ केवल एक बार क्लिक लिखा होगा वहाँ माउस का बयाँ बटन बस एक बार दबाना होगा ) करेंगे , फिर आल प्रोग्राम पर क्लिक करेंगे तो उसी से सटा हुआ एक और मेनू खुलेगा वहाँ साधारण तौर पर सबसे ऊपर एसेसरीज लिखा होता है (“Δ” प्रकार का सिम्बल मेनू मे जहाँ दिखेगा उसका मतलब हुआ की उसके अंदर और प्रोग्राम मौजूद है) वहाँ एसेसरीज पर क्लिक करेंगे तो एक और मेनू खुलेगा जो इस प्रकार दिखाई देगा



डेटा ट्रांसमिशन सेवा (Data Transmission Service)

डेटा को एक स्थान से दूसरे स्थान भेजने के लिए जिस सेवा का उपयोग होता हैं उसे डेटा ट्रांसमिशन सेवा कहते हैं. इस सेवा को देने वाले को डेटा ट्रांसमिशन सेवा प्रदाता (Data Transmission Service Provider) कहते हैं. जैसे-

1. 1. VSNL- विदेश संचार निगम लिमिटेड



2. BSNL- भारत संचार निगम लिमिटेड
3. MTNL- महानगर टेलिफोन निगम लिमिटेड





डेटा ट्रांसमिशन सेवा निम्नलिखित हैं-

१.डायल अप लाइन (Dialup Line) – डायल अप लाइन टेलीफोन कनेक्शन से सम्बंधित हैं जो एक सिस्टम में बहुत सारे लाइनों तथा यूजर्स से जुड़ा होता हैं. इसका उपयोग टेलीफोन की तरह नंबर डायल कर संचार स्थापित करने में किया जाता हैं. इसे कभी कभी स्विच लाइन भी कहा जाता हैं. यह पहले से विद्यमान टेलीफोन सेवा का उपयोग करता हैं. ब्रॉडबैंड तकनीक भी डायल उप कनेक्शन का ही उपयोग करता हैं.

२.लीज्ड लाइन (Leased Line) – लीज्ड लाइन आवाज और डेटा दूरसंचार सेवा के लिए दो स्थानों को जोड़ती हैं. यह एक सिर्फ, समर्पित लाइन (Dedicated Line) नहीं हैं, बल्कि यह वास्तव में दो बिंदु के बीच आरक्षित सर्किट हैं. इसका सबसे ज्यादा उपयोग उद्यगो दुवारा अपने शाखाओं को जोड़ने के लिए किया जाता हैं क्यूंकि यह नेटवर्क ट्राफिक के लिए बैंडविड्थ की गारण्टी देता हैं.

३.एकत्रित सेवा डिजिटल नेटवर्क (ISDN- Integrated Services Digital Network)- एकत्रित सेवा डिजिटल नेटवर्क सर्किट स्विच टेलीफोन नेटवर्क के माध्यम से आवाज, डेटा और छवी का स्तान्तरण हैं. इस सेवा के अंतर्गत आवाज, डेटा और छवी को डिजिटल रूप में भेजा जाता हैं और जरुरत के अनुरूप इस्तेमाल किया जाता हैं. इस सेवा में मोडेम की जरुरत नहीं होती क्यूंकि डेटा का आदान प्रदान केवल डिजिटल रूप में होता हैं.

इन्टरनेट सॉफ्टवेयर या वेब ब्राउजर क्या है

इन्टरनेट सॉफ्टवेयर या वेब ब्राउजर

वेब एक विशाल पुस्तक की तरह हैं तथा वेब ब्राउजर एक सोफ्टवेयर हैं जो कंप्यूटर को इन्टरनेट से जोड़ता हैं. कुछ वेब ब्राउजर निम्नलिखित हैं-

1. माइक्रोसॉफ्ट इंटरनेट एक्सप्लोरर

2. मोजिला फ़ायरफोक्स

3. नेटस्केप नेविगेटर

4. ओपेरा

5. गूगल क्रोम

6. JOVIAL INSTITUTE lOGO


इन सोफ्टवेयर का उपयोग कर हमलोग इन्टरनेट से जुड़ सकते हैं, तथा वेब से अपनी पसंद की जानकारियाँ प्राप्त कर सकते हैं. वेब ब्राउजर का प्रयोग कर हम लोग किसी विशेष पेज या लोकेशन पर उसके पता (Address) को टाइप कर जा सकते हैं. URL (Universal resources locater) में प्रयुक्त हो रहे टूल्स और इन्टरनेट पता दोनों रहता हैं. जैसे – URL http://www.jovialinstitute.blogspot.com में टूल्स http (hypertext transfer protocol- यह एक प्रोटोकॉल अर्थार्त एक पूर्व से निर्धारित नियम हैं जिसका काम संकेत को दिए गए इन्टरनेट पता पर भेजना हैं) हैं और इंटरनेट पता www.jovialinstitute.blogspot.com हैं.

इंटरनेट में मोडेम का उपयोग कैसे किया जाता हैं.





जब इन्टरनेट को टेलीफोन लाइन के माद्यम से कनेक्ट करते हैं तो मोडेम की अवश्यकता होती हैं. यह कंप्यूटर में चल रहे इन्टरनेट ब्रोजर और इन्टरनेट सर्विस प्रदाता के बीच आवश्यक लिंक हैं. टेलीफोन लाइन पर एनालोग सिग्नल भेजा जा सकता हैं, जबकि कंप्यूटर डिजिटल सिग्नल देता हैं. अतः इन दोनों के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए मोडेम की अवश्यकता होती हैं, जो डिजिटल सिग्नल को एनालोग में और एनालोग सिग्नल को डिजिटल सिग्नल में रूपांतरित करता हैं. मोडेम के दोनों ओर कंप्यूटर ओर टेलीफोन लाइन से जुड़ा होना अवश्यक होता हैं. मोडेम से स्पीड को Bit Per Second (BPS), Kilobyte Per Second (KBPS), Megabyte Per Second (MBPS), में मापा जाता हैं.

मोडेम मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं –

1. इंटरनल (आंतरिक) मोडेम – ऐसा मोडेम जो डेस्कटॉप या लैपटॉप में अंदर से ही लगा होता हैं. ऐसा मोबाइल जिसमे हम इन्टरनेट का प्रयोग करते हैं, उसमे इसी प्रकार के मोडेम का इस्तेमाल किया जाता हैं.




2. एक्स्टर्नल (बाह्य) मोडेम- ऐसा मोडेम जिसे डेस्कटॉप या लैपटॉप में बाहर से लगाना पड़ता हैं. डेटा कार्ड (Photon, IDIA etc) या PCMCI में इस प्रकार के मोडेम का उपयोग किया जाता हैं.



अतः मोडेम एक ऐसा डिवाइस हैं जो डेटा को पल्स में परिवर्तित करता हैं तथा उन्हें टेलीफ़ोन लाइन पर संप्रेषित करता हैं.

इन्टरनेट क्या है

इन्टरनेट शब्द को अगर दो भागो मे बाँट दिया जाये तो इंटरनेशनल + नेटवर्क दो शब्द बनते हैं, और दोनों शब्दों का मतलब निकाला जाये तो इसका अर्थ आता हैं अन्तर्राष्ट्रीय जाल अर्थात ऐसा जाल जिसमे सम्पूर्ण संसार शामिल हो।इंटरनेट दुनिया भर में सार्वजनिक रूप से सुलभ कंप्यूटर के सुपर नेटवर्क है. इंटरनेट नेटवर्क मे हजारों की संख्या मे पूरी दुनिया के कंप्यूटर जुड़े हुए हैं

इंटरनेट का सफर, 1970 के दशक में, विंट सर्फ (Vint Cerf) और बाब काहन् (Bob Kanh) ने शुरू किया गया। उन्होनें एक ऐसे तरीके का आविष्कार किया, जिसके द्वारा कंप्यूटर पर किसी सूचना को छोटे-छोटे पैकेट में तोड़ा जा सकता था और दूसरे कम्प्यूटर में इस प्रकार से भेजा जा सकता था कि वे पैकेट दूसरे कम्प्यूटर पर पहुंच कर पुनः उस सूचना कि प्रतिलिपी बना सकें – अथार्त कंप्यूटरों के बीच संवाद करने का तरीका निकाला। इस तरीके को ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकॉल {Transmission Control Protocol (TCP)} कहा गया।


सूचना सूचना का इस तरह से आदान प्रदान करना तब भी दुहराया जा सकता है जब किसी भी नेटवर्क में दो से अधिक कंप्यूटर हों। क्योंकि किसी भी नेटवर्क में हर कम्प्यूटर का खास पता होता है। इस पते को इण्टरनेट प्रोटोकॉल पता {Internet Protocol (I.P.) address} कहा जाता है। इण्टरनेट प्रोटोकॉल (I.P.) पता वास्तव में कुछ नम्बर होते हैं जो एक दूसरे से एक बिंदु के द्वारा अलग-अलग किए गए हैं।


सूचना को जब छोटे-छोटे पैकेटों में तोड़ कर दूसरे कम्प्यूटर में भेजा जाता है तो यह पैकेट एक तरह से एक चिट्ठी होती है जिसमें भेजने वाले कम्प्यूटर का पता और पाने वाले कम्प्यूटर का पता लिखा होता है। जब वह पैकेट किसी भी नेटवर्क कम्प्यूटर के पास पहुंचता है तो कम्प्यूटर देखता है कि वह पैकेट उसके लिए भेजा गया है या नहीं। यदि वह पैकेट उसके लिए नहीं भेजा गया है तो वह उसे आगे उस दिशा में बढ़ा देता है जिस दिशा में वह कंप्यूटर है जिसके लिये वह पैकेट भेजा गया है। इस तरह से पैकेट को एक जगह से दूसरी जगह भेजने को इण्टरनेट प्रोटोकॉल {Internet Protocol (I.P.)} कहा जाता

अक्सर कार्यालयों के सारे कम्प्यूटर आपस में एक दूसरे से जुड़े रहते हैं और वे एक दूसरे से संवाद कर सकते हैं। इसको Local Area Network (LAN) लैन कहते हैं। लैन में जुड़ा कोई कंप्यूटर या कोई अकेला कंप्यूटर, दूसरे कंप्यूटरों के साथ टेलीफोन लाइन या सेटेलाइट से जुड़ा रहता है। अर्थात, दुनिया भर के कम्प्यूटर एक दूसरे से जुड़े हैं। इण्टरनेट, दुनिया भर के कम्प्यूटर का ऎसा नेटवर्क है जो एक दूसरे से संवाद कर सकता है।

इन्टरनेट कैसे काम करता हैं?

मोबाईल से कंप्यूटर पर इंटरनेट चलाना

जब मोबाईल पर इन्टरनेट प्रारम्भ हो जाती हैं तो हम उस मोबाईल का उपयोग मोडेम की तरह करके उसे कंप्यूटर से भी जोड़ सकते हैं और कंप्यूटर पर भी इन्टरनेट का उपयोग कर सकते हैं. सबसे पहले हमें मोबाईल और कंप्यूटर में सम्बन्ध स्थापित करना होगा।
अगर तार के माद्यम से कर रहे है तो-

1. अगर कंप्यूटर में ओपरेटिंग सिस्टम विन्डोज़ एक्स० पी० हैं तो मोबाईल के साथ मिलने वाले सी० डी० को एक बार अपने कंप्यूटर में ऑटो रन करवाना होगा. चूकी जब हम कंप्यूटर में कोई नया हार्डवेयर को जोड़ते हैं तो कंप्यूटर को सॉफ्टवेयर की मदद से ये बतलाना होता हैं कि आखिर उस नए हार्डवेयर का काम क्या हैं और ये कैसे काम करेगा. इस सॉफ्टवेर को ड्राईवर सॉफ्टवेर कहा जाता हैं. और अगर कंप्यूटर में ओपरेटिंग सिस्टम विन्डोज़ सेवेन हैं तो इसकी जरुरत नहीं होती क्यूँकि विन्डोज़ सेवेन में अधिकांश ड्राईवर सॉफ्टवेर पहले से डाला हुआ रहता हैं.

2. जब कंप्यूटर में एक बार सि०डी० चल जाता हैं तो कंप्यूटर को रिस्टार्ट कर देंगे और मोबाईल के साथ मिले तार का एक छोर कंप्यूटर में और दूसरा छोर मोबाईल में जोड़ कर हार्डवेयर अच्छे से जुड़ने का सन्देश आने का इंतजार करेंगे. अगर सब कुछ सही रहा तो नोटीफिकेशन बार (डेस्कटॉप कि एसी जगह जहाँ समय दिखता हैं) पर एक सन्देश आयेगा कि हार्डवेयर सही तरीके से जुड गया हैं और अब आप इसका इस्तेमाल कर सकते हैं.

Notes:- इस दो स्टेप के करने से ही आपका मोबाईल कंप्यूटर से जुड़ जाता हैं. ऊपर का ये दोनों स्टेप सभी मोबाईल के लिए एक ही होता हैं परन्तु इससे आगे का काम अलग अलग मोबाईल में अलग अलग तरीके से होता हैं. सभी मोबाइल्स सॉफ्टवेयर में जो खास बातें ध्यान रखनी हैं वो हैं- हम मोबाईल जोड़ने के बाद उस मोबाईल सॉफ्टवेयर को खोल लेंगे उसके सेटिंग में जा कर हम जिस कम्पनी का सीम इस्तेमाल कर रहे हैं उसका APN और डायलअप नंबर डालेंगे. APN और डायलअप नंबर हमे उस सीम कम्पनी के ग्राहक सेवा केन्द्र से बात करने पर मिल जाएगा. इस प्रक्रिया के बाद इसी सॉफ्टवेयर से दुवारा इंटरनेट कनेक्ट किया जा सकता हैं

अगर ब्लूटूथ से कर रहे है तो-

1. पहले यह सुनिश्चित करना होता हैं कि कंप्यूटर और मोबाईल दोनों में ब्लूटूथ हैं या नहीं. ब्लूटूथ से जोड़ने के लिए दोनों में ब्लूटूथ होना अतिआवश्यक होता हैं. अगर कंप्यूटर में ब्लूटूथ में नहीं हैं तो बाजार से अलग से ब्लूटूथ खरीदना होता हैं. और अगर मोबाईल में नहीं हैं तो फिर ब्लूटूथ युक्त मोबाईल लेना होता हैं. अलग से लिए गए ब्लूटूथ को कंप्यूटर में लगा कर एक बार उसका ड्राईवर सॉफ्टवेर कंप्यूटर में चलाना होगा. जब ये प्रक्रिया पूरी होती हैं तो नोटीफिकेशन बार पर एक आइकन बन जाएगा.

2. मोबाईल में ब्लूटूथ को ओन् कर लेंगे. उसके बाद नोटीफिकेशन बार वाले ब्लूटूथ आइकन को ओपन करके न्यू डिवाइस सर्च करेंगे. जब ब्लूटूथ सॉफ्टवेर में मोबाईल का आइकन बन जायगा तब पैरिंग का काम करेंगे. इस प्रक्रिया में कंप्यूटर पर कोई अंक दबाना होता हैं फिर उसी अंक को मोबाईल पर दबाना होता हैं. इससे यह सुनिश्चित किया जाता हैं कि डाटा अदान प्रदान करने के लिए दोनों डिवाइस तेयार हैं या नहीं या कोई अन्य उपकरण तो दोनों के बीच में नहीं आ रहा. जब यह सम्पन होती हैं तो हम मोबाईल को सीरियल पोर्ट के तौर पर कांनेक्ट कर देंगे.

इस दो स्टेप के करने से ही आपका मोबाईल कंप्यूटर से जुड़ जाता हैं. फिर ब्लूटूथ आप्शन में डायलअप का इस्तेमाल करके इन्टरनेट प्रारम्भ किया जाता हैं.( By Mr.Shahid Mirza)

From :- JOVIAL INSTITUTE
Address:- 691, Janta Flat, G.T.B. Enclave
E-mail:- Jovial_institute@yahoo.com
Moble No:- 9811387541 # 9211112103

मोबाईल पर इन्टरनेट प्रारम्भ करना

सबसे पहले यह सुनिश्चित कर लेना होता हैं कि जिस मोबाईल में इन्टरनेट चलाना हैं उसमें GPRS की सुविधा हैं या नहीं. जब यह पता चल जाता हैं कि हाँ मोबाईल में यह सुविधा हैं तो जिस कम्पनी का सीम कार्ड लगा हैं उस कम्पनी के ग्राहक सेवा केन्द्र को फोन कर के GPRS प्रारम्भ करने का आग्रह करना पड़ता हैं. शुरुवाती जाँच के बाद जब ग्राहक सेवा केन्द्र आपके आग्रह को मान लेता हैं तो आपके मोबाईल पर एक सन्देश प्राप्त होगा. यह एक सिस्टम सन्देश होता हैं जिसमे इन्टरनेट सेटिंग्स समाहित होती हैं. इस सन्देश को खोल कर इसे मोबाईल में सेव करना होता हैं. इसके सेव होने के बाद ही मोबाईल में इन्टरनेट प्रारम्भ की जा सकती हैं. हरएक मोबाईल कम्पनी की अपनी अपनी GPRS की शर्ते होती हैं जिसे ग्राहक सेवा केन्द्र के मार्फ़त से जान सकते हैं।


1. GPRS सपोर्ट करने वाला मोबाईल खरीदना.


2. GPRS सेवा देने वाला सीम कार्ड लेना।


3. सीम एक्टीवेट होने के बाद ग्राहक सेवा केन्द्र को GPRS सुविधा के लिए आग्रह करना.
4. ग्राहक सेवा केन्द्र से आया सन्देश (GPRS सेटिंग्स) को मोबाईल में सेव करना.
5. मोबाईल रिस्टार्ट करके मोबाइल इन्टरनेट ब्रोज़र खोल कर इन्टरनेट उपयोग कर सकते हैं।

LinkWithin2

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...
Gadget